स्वर्णरेखा नदी पर मुख्यतः दो प्रमुख बांध स्थित हैं:
- स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना (Swarna Rekha Multi-purpose Project – SRMP) का भाग, जो इस नदी के जल प्रबंधन के उद्देश्य से बनाया गया है।
- चांडिल बांध (Chandil Dam), जो झारखंड राज्य के सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित है और इसका निर्माण स्वर्णरेखा नदी पर जल आपूर्ति और सिंचाई के लिए किया गया है।
स्वर्णरेखा नदी का उद्गम रांची, झारखंड के पास स्थित होता है, और यह नदी झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों से होकर गुजरती है। इसका महत्व इसके आसपास के क्षेत्र के लिए अत्यधिक है, क्योंकि यह नदी सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और बिजली उत्पादन के लिए प्रमुख स्रोतों में से एक है।
अब हम मुख्य रूप से चांडिल बांध और स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के संदर्भ में विस्तार से चर्चा करेंगे।
चांडिल बांध
निर्माण और उद्देश्य:
चांडिल बांध का निर्माण 1980 के दशक में शुरू किया गया और इसे मुख्य रूप से सिंचाई, जल आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण के लिए विकसित किया गया। इसका निर्माण स्वर्णरेखा नदी पर किया गया है, जो झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित है। बांध का उद्देश्य मुख्य रूप से स्वर्णरेखा नदी के जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करना और आसपास के क्षेत्रों में जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
तकनीकी विशेषताएँ:
- ऊंचाई: चांडिल बांध लगभग 56 मीटर ऊँचा है।
- लंबाई: बांध की लंबाई लगभग 720 मीटर है।
- जलाशय क्षमता: इस बांध के जलाशय की कुल क्षमता लगभग 196 मिलियन क्यूबिक मीटर है। यह जलाशय जल आपूर्ति और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।
सिंचाई और कृषि में योगदान:
चांडिल बांध का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति करना है। बांध से छोड़े गए पानी का उपयोग झारखंड और पश्चिम बंगाल के कृषि क्षेत्रों में फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है। इस बांध के द्वारा बड़े पैमाने पर धान, गेहूं, दालों और अन्य फसलों की खेती को बढ़ावा मिलता है। यह बांध करीब 85,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करता है, जिससे खेती और कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
जल विद्युत उत्पादन:
बांध के निर्माण का एक और प्रमुख उद्देश्य जल विद्युत उत्पादन भी है। चांडिल बांध के पास एक जल विद्युत संयंत्र स्थापित किया गया है, जो स्वर्णरेखा नदी के प्रवाह से बिजली उत्पन्न करता है। यह बिजली संयंत्र स्थानीय स्तर पर बिजली की मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके द्वारा उत्पन्न बिजली झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में वितरित की जाती है।
बाढ़ नियंत्रण:
चांडिल बांध का निर्माण बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से भी किया गया था। मानसून के मौसम में स्वर्णरेखा नदी में जल स्तर बढ़ जाता है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा रहता है। बांध के जलाशय में जल को नियंत्रित करने की क्षमता होती है, जिससे बाढ़ की संभावना कम हो जाती है और आसपास के क्षेत्रों में जन-जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव:
चांडिल बांध का निर्माण और संचालन पर्यावरण और समाज पर कई प्रभाव डालता है। बांध के निर्माण के कारण कई ग्रामीणों को अपने मूल निवासों से विस्थापित होना पड़ा, क्योंकि बांध के जलाशय में कई गांव और खेत समा गए थे। हालांकि, यह परियोजना ग्रामीण विकास और सिंचाई सुविधाओं के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में वृद्धि का कारण भी बनी है।
स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना (SRMP)
परियोजना की पृष्ठभूमि:
स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना भारत के झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्यों के लिए एक प्रमुख जल प्रबंधन योजना है। इसका उद्देश्य सिंचाई, बिजली उत्पादन और जल आपूर्ति की आवश्यकताओं को पूरा करना है। इस परियोजना के अंतर्गत स्वर्णरेखा नदी और उसकी सहायक नदियों पर विभिन्न बांध, नहरें और जल विद्युत संयंत्र स्थापित किए गए हैं। इस परियोजना का आरंभ 1970 के दशक में हुआ और इसे झारखंड सरकार और केंद्रीय जल आयोग द्वारा प्रायोजित किया गया।
परियोजना के प्रमुख घटक:
- चांडिल बांध: जैसा कि पहले बताया गया, यह परियोजना का सबसे प्रमुख बांध है।
- इछा बांध: इछा बांध भी स्वर्णरेखा नदी पर स्थित है और यह मुख्य रूप से सिंचाई के लिए जल आपूर्ति करने और जल विद्युत उत्पादन में सहायक है।
- गालूडीह बराज: यह बराज पश्चिम बंगाल में स्थित है और इसका निर्माण सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए किया गया है।
जल आपूर्ति और सिंचाई:
स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना का मुख्य उद्देश्य स्वर्णरेखा नदी और उसकी सहायक नदियों के जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है। इस परियोजना के माध्यम से 2 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई की जाती है। इसका सबसे अधिक लाभ झारखंड और ओडिशा के किसानों को मिलता है, क्योंकि यह परियोजना उनके लिए पर्याप्त जल आपूर्ति सुनिश्चित करती है।
जल विद्युत उत्पादन:
स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के अंतर्गत जल विद्युत संयंत्रों की स्थापना भी की गई है। इन संयंत्रों में उत्पन्न बिजली झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में वितरित की जाती है, जिससे इन राज्यों की बिजली की मांग को पूरा किया जाता है।
सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव:
स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना का निर्माण और संचालन स्थानीय आबादी और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालता है। एक ओर जहां इस परियोजना ने सिंचाई और जल आपूर्ति की समस्याओं का समाधान किया है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़े बांधों और जलाशयों के कारण कई गांवों का विस्थापन भी हुआ है। पर्यावरणीय दृष्टि से, परियोजना के तहत वनों और जलजीवों पर भी कुछ नकारात्मक प्रभाव देखा गया है, क्योंकि बांधों के कारण नदी के प्राकृतिक प्रवाह में परिवर्तन हुआ है।
निष्कर्ष:
स्वर्णरेखा नदी पर चांडिल बांध और स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के अन्य घटक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये परियोजनाएं झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्यों की जल आपूर्ति, सिंचाई और बिजली उत्पादन की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। हालांकि इन परियोजनाओं का कुछ नकारात्मक प्रभाव भी है, जैसे विस्थापन और पर्यावरणीय क्षति, फिर भी इनका समग्र विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान है।